tag:blogger.com,1999:blog-3778570096826367144.post7824427056418277608..comments2024-03-19T07:09:49.493+05:30Comments on Ground Reality: The Borlaug I knewDevinder Sharmahttp://www.blogger.com/profile/05867902048509662981noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3778570096826367144.post-36461424750124215452009-09-24T16:06:38.855+05:302009-09-24T16:06:38.855+05:30आदरणीय देवेंद्र जी आपने नार्मन बोरोलाग की देन के स...आदरणीय देवेंद्र जी आपने नार्मन बोरोलाग की देन के सकारात्मक व नकारात्मक दोनों पक्षों का तटस्थ विश्लेषण किया । दरअसल बोरलाग ने हरित क्रांति नहीं गेहूं क्राति लाई । यही कारण है कि खाद्यान्न उत्पादकता में बढ़ोत्तरी अब ढलान पर है । यदि हरित क्रांति हुई होती तो वह तीन दशकों में ही थककर हांफने न लगती । गेहूं क्रांति ने एकफसली खेती को बढ़ावा दिया जिससे दलहनी, तिलहनी और मोटे अनाजों की खेती उपेक्षित हुई । उदाहरण के लिए 1950-51 कुल खाद्यान्न उत्पादन में गेहूं की भागीदारी 13 प्रतिशत थी जो कि अइब 39 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है । इससे फसल चक्र रूका और मिट्टी के नमीपन, भुरभुरेपन व उर्वरता में गिरावट आई । रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों के अत्यधिक व असंतुलित प्रयोग से कृषि मित्र जीव-जंतुओं का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ । 1960 के दशक में प्रसिद्ध जीवन वैज्ञानिक और नेहरु जी के पत्नी के भाई बी आर कौल ने नेहरु जी की गेहूं केंद्रित कृषि रणनीति का विरोध करते हुए कहा था कि गेहूं बो बोकर देश में रेगिस्तान को बढ़ावा दिया जा रहा है । <br />यहां लाख टके का सवाल यह है कि यदि बोरलाग ने करोड़ों लोगों को भुखमरी के जाल से मुक्ति दिलाई तो आज एक अरब से अधिक लोग भूख से पीड़ित क्यों है । वह भी उन्ही देशों में जहां गेहूं क्रांति हुई थी । इससे स्पष्ट है कि गेहूं क्रांति ने खेती-किसानी के दीर्घकालिक विकास को रोका और उसे बाजारोन्मुखी बनाया जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मुनाफा बढ़ा । <br /><br />रमेश कुमार दुबे<br />कृषि विषयक स्वतंत्र लेखकAnonymousnoreply@blogger.com