tag:blogger.com,1999:blog-3778570096826367144.post7302801640805182818..comments2024-03-19T07:09:49.493+05:30Comments on Ground Reality: Celebrating the revival of traditional rice seedsDevinder Sharmahttp://www.blogger.com/profile/05867902048509662981noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3778570096826367144.post-26832365681886373692010-05-31T22:04:15.162+05:302010-05-31T22:04:15.162+05:30आदरणीय देवेंद्र जी पारंपरिक बीजों के पुनर्जीवन की ...आदरणीय देवेंद्र जी पारंपरिक बीजों के पुनर्जीवन की खबर देने के लिए धन्यवाद । दरअसल बीज बाजार पर आधिपत्य जमाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियां खेती की नींव (बीज) पर कब्जा करने की कुटिल रणनीति पर काम कर रही हैं । पेटेंट और बौद्धिक संपदा अधिकार कानून इसके लिए सीढ़ी का काम कर रहे हैं । उदाहरण के लिए चोटी की दस कृषि जैव प्रौद्योगिकी कंपनियां वैश्विक बीज बाजार के 67 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा जमाए बैठी हैं । इनका आधिपत्य बढ़ता ही जा रहा है । ये कंपनियों सभी देशों पर एक जैसे बीज अपनाने का दबाव बना रही हैं चाहे उनके देश की भौगोलिक परिस्थितियां कितनी ही भिन्न क्यों न हों । भारत में सूखा व बाढ़ रोधी असंख्य प्रजातियां प्रचलित रही हैं लेकिन बीज एकाधिकार की बढ़ती प्रवृत्ति ने सभी का भुला दिया । बीजों के सहेजने की प्रथा नष्ट होने के कारण कृषि विविधता खतरे में पड़ गई है । उदाहरण के लिए 1959 में श्रीलंका में 2000 से अधिक किस्मों के धान उगाए जाते थे लेकिन 1972 में 100 से भी कम किस्में रह गईं । इसी प्रकार बांग्लादेश व इंडोनेशिया में क्रमश 62 व 74 फीसदी धान की किस्में सदा के लिए विलुप्त हो गईं । इन परिस्थितियों में पारंपरिक बीजों के पुनर्जीवन और प्रचलन का यह प्रयास सराहनीय है । <br /><br />रमेश दुबेRamesh Dubeyhttps://www.blogger.com/profile/10812154814586308125noreply@blogger.com